अप्लास्टिक एनीमिया में सरकार दे रही 3 लाख रुपए तक की मदद

अप्लास्टिक एनीमिया कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक, घातक और खर्चीली बोन मैरो की समस्या है। इसमें मरीज को बार-बार रक्त और प्लेटलेट्स चढ़ाने पड़ते हैं। इसकी दवाइयां महंगी होती हैं, इलाज लंबा चलता है और कई बार तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है। इसके इलाज में अब सरकार भी मदद करने लगी है। प्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए. के. द्विवेदी ने पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी।

लोग मानते हैं सामान्य बीमारी, खतरा नहीं भांप पाते
डॉ. द्विवेदी ने बताया कि जब लोग “एनीमिया” सुनते हैं, तो अक्सर यही मान लेते हैं कि यह सिर्फ आयरन अथवा विटामिन की कमी से जुड़ी समस्या है लेकिन अप्लास्टिक एनीमिया बिल्कुल अलग और अत्यधिक गंभीर बीमारी है, जिसमें शरीर का बोन मैरो खून बनाना बंद कर देता है, साथ ही वह रक्त कणिकाओं को नष्ट भी करने लगता है जिसके कारण यह स्थिति इतनी गंभीर होती है कि समय पर इलाज न हो तो मरीज की जान तक जा सकती है। डॉ. द्विवेदी ने प्रेस वार्ता में एक पत्र पढ़ा, जो प्रधानमंत्री ने एक अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज को भेजा है, और जिसमें उन्हें प्रधानमंत्री राहत कोष योजना के तहत ₹3,00,000 की सहायता राशि प्राप्त हुई है। यह पत्र उनके लिए प्रेरणा बना और अब वे चाहते हैं कि और भी लोग जागरूक हों और इस योजना का लाभ उठाएं।

मरीजों को मदद करे सरकार
डॉ. द्विवेदी का कहना है “अगर सरकार कैंसर, किडनी और हार्ट जैसे रोगियों को विशेष ध्यान देती है और इलाज हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करती है, तो अप्लास्टिक एनीमिया को भी उसी श्रेणी में लाना चाहिए। यह बीमारी भी उतनी ही जानलेवा और खतरनाक है, तथा इसका इलाज भी उतना ही अधिक खर्चीला है।”

बीमारी की जड़ और अनजानी बातें
यह जानकर हैरानी होती है कि ज्यादातर अप्लास्टिक एनीमिया के मामलों में यह पता ही नहीं चलता कि उन्हें यह बीमारी क्यों हुई। कुछ लोगों में यह डेंगू या अन्य वायरस जैसे हेपेटाइटिस या एपस्टीन-बार वायरस, कुछ दवाइयों या ज़हरीले केमिकल्स के कारण हो सकता है लेकिन ज़्यादातर मरीज़ों में यह बीमारी अचानक और बिना किसी चेतावनी के सामने आती है।

कैंसर से भी गंभीर बीमारी
बहुत कम लोग जानते हैं कि यह बीमारी कैंसर से भी अधिक गंभीर होती है, पर इसका नाम ज़्यादातर लोगों को पता नहीं होता। इसके इलाज में भी लगभग वही दवाइयां दी जाती हैं जो कैंसर के मरीज़ों को मिलती हैं, जैसे एटीजी और सायक्लोस्पोरीन। कई लोग इसे सामान्य खून की कमी समझकर आयरन की गोलियां या घरेलू तरीके अपनाते हैं, लेकिन ये इस बीमारी में बिल्कुल काम नहीं करते और कभी-कभी नुकसान भी कर सकते हैं। अप्लास्टिक एनीमिया का स्थायी इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही हो सकता है, लेकिन इसके लिए HLA (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) का मेल मिलना बहुत मुश्किल होता है खासकर भारत जैसे देश में, जहां बोन मैरो डोनेशन के बारे में जानकारी बहुत कम है।

समय पर करें मदद के लिए आवेदन
डॉ. द्विवेदी का मानना है कि अब वक्त आ गया है जब समाज को अप्लास्टिक एनीमिया के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना होगा न सिर्फ़ मरीज़ों के लिए, बल्कि नीति-निर्माताओं तक आवाज़ पहुंचाने के लिए भी। मरीज़ों को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री राहत कोष जैसी सरकारी योजनाओं के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें और समय रहते आवेदन करें, ताकि उन्हें आर्थिक सहायता मिल सके। वहीं, सरकार को भी इस बीमारी की गंभीरता को समझते हुए इसे विशेष सहायता योग्य रोगों की सूची में शामिल करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रयास से और अधिक मरीज़ों को लाभ मिल सकेगा। आम जनता के बीच यह जानकारी पहुंचना आवश्यक है, ताकि जिन्हें बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराना है, उन्हें स्वस्थ जीवन बिताने की संभावनाएं बढ़ सकें।

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